Sonia Jadhav

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हम तुम- भाग 1

भाग 1
माँ मैं जा रहा हूँ मुझे देर हो रही है ऑफिस के लिए।
ठीक है, ध्यान रखना अपना।
अरे छाता तो लेकर जा, मौसम का कुछ पता नहीं है। ना जाने कब बरस जाये।
ओह थैंक यू माँ, अच्छा हुआ जो तुमने याद दिला दिया।

आज मौसम को देखकर लग नहीं रहा था कि बारिश होगी, अच्छी खासी धूप जो निकली हुई थी। बस स्टॉप से ऑफिस की दूरी सिर्फ 5 मिनट की ही थी। लेकिन भीगने के लिए कुछ सेकण्डस ही काफी हैं।

बस से उतरा ही थी कि अचानक से तेज़ बारिश शुरू हो गयी और मैं बारिश से बचते-बचाते ऑफिस पहुँचा।
अभी तक कोई आया नहीं था ऑफिस में, सिर्फ उसके सिवाय। अभी कुछ ही दिन पहले ज्वाइन किया था उसने। लेकिन देखने में ही थोड़ी खड़ूस टाइप की लगी थी मुझे। कंप्यूटर ऑन कर रही थी।

जब मैं ऑफिस पहुंचा तो मैं थोड़ा भीग गया था। चूँकि मुझे बारिश पसंद नहीं है और भीगना तो बिलकुल भी नहीं। ज़रा सी भी गीला हो जाऊँ तो मुझे चिड़चिड़ाहट होने लगती है।

मैं छतरी रखने सीधा अंदर वाले छोटे से रूम में चला गया और बड़बड़ाने लगा अपनी आदत के मुताबिक…..बारिश को अभी होना था, थोड़ी देर रुक जाती तो तेरा क्या जाता। कम से कम मैं भीगता तो नहीं।
रूम से बाहर आया तो उसने अपने चश्मे से झांकते हुए कहा….चेक कर लिया ना तुमने आप आपको अच्छे से, कहीं तुम बारिश से गल तो नहीं गए ना?

तुम अपने काम से काम रखो, मेरे गलने पर ध्यान मत दो।

यूँ तो मैं किसी के साथ गुस्से से बोलता नहीं हूँ लेकिन उसकी बात सुनकर मुझे थोड़ा गुस्सा सा आ गया था।

आप सोच रहे होंगे, उस व्यक्ति का नाम क्यों नहीं लिया मैंने अब तक, ऐसे ही मन नहीं किया। लेकिन बिना उसका नाम लिए यह कहानी पूरी भी नहीं होगी। उसका नाम अदिति था और मेरा आदित्य ।

मेरा ऑफिस कोई बहुत बड़ा ऑफिस नहीं था, और ना ही वहां बहुत सारे लोग ही काम करते थे। अभी नया-नया ही खुला था। गिनती के 4-5 लोग ही थे और बाकि 2 बॉस थे। छोटी सी आई टी फर्म थी।

अदिति सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर थी मेरी तरह। देखने में बिल्कुल ही साधारण थी। एक लंबी चोटी बनाकर आती थी तेल में चिपुड़ी हुई। सांवली रंगत, छोटी-छोटी आंखें और उस पर चश्मा पहनकर आती थी। जब से आयी थी सूट ही पहनकर आ रही थी, जीन्स में तो कभी देखा नहीं। मुझे तो पुराने जमाने की लगती थी। दिखने में चाहे जैसी भी हो, लेकिन बोलने में बड़ी बेबाक थी।

मुझे बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी थी। सोचा था सुंदर सी लड़की आयेगी काम करने के लिए साथ तो ऑफिस में मन लगा रहेगा, काम करने में मज़ा आयेगा। लेकिन इस रेगिस्तान में मरुस्थल तो केवल एक मरीचिका मात्र बनकर रह गया था।

मेरे साथ ही उसकी मेज़ लगी हुई थी।

आप सब सोच रहे होंगे जब वो मुझे पसन्द ही नहीं तो फिर क्यों मैं इतनी बकबक कर रहा हूँ उसके बारे में। अजी जनाब मेरी इस कहानी की नायिका तो वही है ना, उसके ज़िक्र के बिना यह कहानी आगे कैसे बढ़ेगी।

सुबह 10 बजे ऑफिस खुल जाता था रोज़ और अदिति हमेशा सबसे पहले आकर बैठी होती थी।
हाय आदित्य….
हैलो अदिति, तुम बड़ी जल्दी आ जाती हो रोज़।

हाँ वो पापा और मेरे ऑफिस का रास्ता एक ही है तो पापा ऑफिस जाते हुए कार से मुझे भी छोड़ देते हैं यहाँ।

वैसे तुम कहाँ रहते हो आदित्य?

मैं रोहिणी में रहता हूँ अदिति।

अरे मैं भी तो प्रशांत विहार रहती हूं।

कुछ और पूछने ही वाली थी कि मैंने बीच में ही टोक दिया……अदिति हम यहां काम करने के लिए आते हैं बात करने के लिए नहीं, तो बेहतर होगा  तुम अपने काम में ध्यान दो और मैं अपने। चलो काम शुरू करते हैं अगर बॉस ने बातें करते देख लिया तो बेकार में ही मुसीबत खड़ी हो जाएगी।

अदिति मुँह बनाते हुए अपने काम में लग गयी।  तभी थोड़ी देर में सुमित भी आ गया। मैं , अदिति और सुमित तीनों की मेज़ एक साथ लगी हुई थी। सुमित वेब डिजाइनर था, मैं और अदिति सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर थे।

बॉस लोग आ चुके थे। हम सभी अपने अपने कामों में व्यस्त थे। लंच ब्रेक एक बजे होता था और अदिति मैडम 10 मिनट  पहले ही काम करना बंद कर देती थी और धीरे से बोलती थी…..आदित्य, सुमित लंच टाइम हो गया है, चलो लंच करते हैं।
तब तक बॉस की आवाज आ जाती थी….अदिति 10 मिनट हैं अभी।

इतनी तेज़ थी, जी सर कहकर सीधा वाशरूम चली जाती थी और पूरे 10 मिनट लगाकर ही बाहर आती थी। सुमित और मैं तो उसकी हरकतों पर बहुत हँसते थे।

अदिति…..आदित्य, सुमित छोले लोगे? साथ में आम का आचार भी है।

सुमित….देना अदिति थोड़े से छोले मुझे।

अदिति सुमित को छोले देने के बाद….थोड़ी अरबी की सब्जी देना आदित्य मुझे, तुमने छोले क्यों नहीं लिए?

आदित्य परेशान होते हुए…..मैं ब्राह्मण हूँ, आदित्य बहुगुणा नाम है मेरा। यह सरनेम तुमने पहले नहीं सुना होगा शायद, तो तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूँ कि मैं गढ़वाली ब्राह्मण हूँ। मेरे यहाँ प्याज़, लहसुन नहीं खाया जाता और वैसे भी मैं किसी का झूठा नहीं खाता।

मेरी प्याज़-लहसुन वाली बात सुनकर सुमित खांसने लगा।
मैंने उसे आँखे दिखाते हुए पानी दिया पीने के लिए और चुप रहने का इशारा किया।

अदिति….ओह सॉरी मुझे पता नहीं था कहकर अपना खाना खाने लगी।
हम सब खाना खाकर उठ गए थे और अदिति आम का आचार मजे लेकर चूस रही थी।
सर ने जब उसकी तरफ देखा तो कहने लगी…..सर अभी 5 मिनट बाकि है लंच खत्म होने में।

सुमित मुझसे कहने लगा…. यार यह लड़की थोड़ी अजीब नहीं है। कुछ अलग ही है।
मैंने हँसते हुए कहा…….एलियन जो है, जादू-जादू कहकर मैं ऋतिक रोशन का गाना गाने लगा।

5 मिनट बाद.....

क्या बात है बड़े हंस रहे हो तुम दोनों?

सुमित हँसते हुए बोला…..आदि की फेवरेट फिल्म है" कोई मिल गया " और उससे ज्यादा फेवरेट है उसमें वो एलियन, बस इसलिए रोज़ जादू-जादू गाता रहता है।

अदिति भी यह सुनकर हँसने लगती है।
आदित्य गुस्से से सुमित की तरफ देखने लगता है।

अदिति….अरे सुमित तो मज़ाक कर रहा था, तुम इतने गुस्से से क्यों देख रहे हो उसे आदि।

आदित्य…….आदि मैं सुमित के लिए हूँ, तुम्हारे लिए सिर्फ आदित्य हूँ। तुम ज़्यादा फ्रैंक होने की कोशिश मत करो मेरे साथ।
अदिति गुस्से में…..तुम कुछ पागल हो क्या? एक ही ऑफिस में काम करते हैं इसलिए तुमसे दोस्त समझकर बात कर ली। जमीन पर रहो, ज्यादा हवा में मत उड़ो।

तभी सर की आवाज़ आती है ..... लंच टाइम खत्म हो चुका है। शाम तक प्रोजेक्ट की अपडेट चाहिए मुझे।
हम तीनों ही एक साथ बोले…..जी सर।

ठीक शाम 6 बजे ऑफिस खत्म हो जाता था। लेकिन काम बाकि होने के कारण हम तीनों रुके हुए थे।

6:30 बजे सुमित कंप्यूटर ऑफ़ करने लगा….

मेरा तो काम खत्म हो गया है। तेरा क्या सीन है आदि?

बस 5 मिनट और, मेरा भी लगभग खत्म हो गया है। 5 मिनट बाद चलते हैं।

अदिति….सुमित तू अभी कहीं नहीं जायेगा, मुझे थोड़ा समय लगेगा। मैं अकेली कैसे रुकुंगी ऑफिस में। साथ चलते हैं ना?

आदित्य मन ही मन सोचने लगा….मुझे नहीं बोला रुकने के लिए, शायद गुस्सा होगी दोपहर वाली बात की वजह से। होने दो मुझे क्या, भाड़ में जाये मेरी बला से।

सुमित….आदि इसकी थोड़ी मदद कर दे ना, देख ज़रा कौनसी कोडिंग में अटक गई है अदिति।

आदित्य कुछ जवाब नहीं देता और अपने फोन पर लग जाता है।

❤सोनिया जाधव

# लेखनी उपन्यास प्रतिय

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8 Comments

Amir

23-Jan-2022 09:41 AM

Nice

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Punam verma

10-Jan-2022 09:20 AM

Nice

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Shrishti pandey

08-Jan-2022 04:51 PM

Very nice

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